कांग्रेस के महानायक को मरणोपरांत भाजपा ने दिया परमवीर चक्र ?

श्रीयुत् श्रीनिवास तिवारी को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा ?

1 / 1

रीवा @खबरिया. रीवा की घरती का एक ऐसा महानायक जिसका शरीर मृत्युलोक से निकल गया और आत्मा स्वर्गलोक पहुंच गयी इसके बावजूद उसके राजनैतिक अंदाज की अमिट छाप आज भी इस रीवा की धरती पर उसके समर्थकों की आत्मा में रची बसी है। मरणोपरांत उस नाम की ब्रांडिंग 2023 के चुनाव में जिस कदर हुई उससे प्रतीत होता है कि वह व्यक्ति मानव नही महामानव था, जिसकी राजनैतिक विरासत ने उसके उत्तराधिकारी की तकदीर बदल दी। जिसका कभी उनके नाती को सपना भी नही आया होगा वो संभव हो गया। कांग्रेस को तिलांजलि दे भाजपा में आये सिद्धार्थ तिवारी ने अपना एक अहम् लक्ष्य पूरा कर लिया है और उन्होंने बता दिया कि सिद्धार्थ के मायने क्या है ? राजनीति के पुरोधा रहे स्व.पंडित श्रीनिवास तिवारी के नाती (सुपौत्र) सिद्धार्थ तिवारी को कांग्रेस भले संभाल नहीं पाई किन्तु भाजपा ने उन्हें सिर्फ हाथो हाथ लिया अपितु टिकट भी पकड़ा दिया। नतीजा अनुकूल रहा वरना भाजपा के रणनीतिकारों की भद्द पिट जाती। त्योंथर क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी रहे सिद्धार्थ उन डीएमटी वोटों को कैश कराने में सफल रहे जो श्रीनिवास तिवारी के मरणोपरांत उनके ही घर में अपना भविष्य खोज रहे थे। इतना ही नहीं सिद्धार्थ तिवारी का प्रभाव त्योंथर समेत जिले की आठों विधानसभा सीटों पर पड़ा। सिर्फ रीवा को छोड़ दिया जाए, क्योकि यहां राजेन्द्र शुक्ल स्वयं विकास का इतना धुंआ उड़ा चुके हैं कि आवाम उनके मामले में दाये-बाये देखना पंसद ही नही कर रही है,इसके अलावा प्रायः सीट पर कम से कम दस-दस हजार वोट का इजाफा भाजपा के पक्ष में हुआ ऐसा राजनैतिक पंडित मानते हैं। भाजपा में प्रवेश पर सिद्धार्थ की जमकर आवभगत हुई थी। भाजपा के एक एक विधायक ने स्व.पंडित श्रीनिवास तिवारी के राजनैतिक प्रभामंडल की महिमा बखान में लेशमात्र कंजूसी नहीं की थी। सिद्धार्थ की तारीफों के पुल क्या पुरे बांध ही बना दिए गए थे। साक्षी था भाजपा का संभागीय कार्यालय अटल कुंज। यदि कहा जाए कि श्रीयुत् को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा ? उसका असर यह रहा कि श्रीयुत के लाखों समर्थकों एवं चाहने वालों में जो सूनापन था उसके भरपाई के लिये उन लोगों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जाति-पांत की राजनीति के तमाम आरोप प्रत्यारोप जो श्रीयुत् के जीवनकाल में लगते थे उनके समर्थकों ने भाजपा को अपना अभूतपूर्व समर्थन देकर उन्हें धो डाला हैं। अलहदा बात हैं की यही लोग श्रीयुत् के जीवनकाल में भाजपा के सिद्धांत, उनकी नीति-रीति व उनके चरित्र की चिंदी चिंदी करने में लगे हुए थे। कहा जाता हैं कि राजनीति में मित्रता एवं शत्रुता का स्थायीभाव नहीं होता हैं। सिद्धार्थ तिवारी उसका ताज़ातरीन उद्धारहण हैं। 

श्रीयुत् की विरासत को हल्के से लेने की कांग्रेसी चूक

यहां उलेखनीय है कि जहां एक तरफ श्रीयुत् की राजनीतिक विरासत को हलके में लेने की कांग्रेस से चूक हुई है वहीं उनकी नतपतोहू श्रीमती अरुणा तिवारी का सही उपयोग चुनावी रण में कांग्रेस नहीं कर पाई। कांग्रेस ने बिना किसी पद-पदवी से नवाजे उन्हें काफी विलंब से प्रचार में उतारा था। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने उन्हें सिर्फ उपयोग की विषयवस्तु समझा जबकि वे एक टिकट की हकदार रही हैं । उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया होता तो श्रीयुत् की विरासत का एकतरफा रुख कभी नहीं होता और उनके समर्थक भी एकतरफा जाने को विवश न होते ? कांग्रेस के किन सियासतदाओं ने टिकट की विसात बिछाई थी, किसे परिवर्तन का अहंकार था, कौन रीवा की कांग्रेसी राजनीति में अहम् किरदार पर था? उसकी लानत- मलानत का समय आ गया है किन्तु कांग्रेस की राजनीति के सत्यानाशी का यहां के कांग्रेसी बाल बांका नही कर पायेंगे। 

सत्यानाशी की खड़ाऊं पूजा की तैयारी में लुटे पिटे कांग्रेसी

कांग्रेस का सत्यानाश का कीर्तिमान रचने वाली राजनीति से खफा कांग्रेसी भरपूर मात्रा में लूट पिट चुके हैं या फिर उन्हें उनके हक से बेदखल कर दिया गया है उस सत्यानाशी की खड़ाऊं  के पूजा करने के लिये बेताब जरूर है लेकिन उससे फायदा क्या होने वाला है? अब तो यहां अब पछताय होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। बहरहाल रीवा जिले की विधानसभा सीटों के अप्रत्याशित परिणाम के बाद सिद्धार्थ तिवारी अमहिया घराने के सबसे बड़े हीरो बन गये हैं। भाजपा में प्रवेश के दौरान से ही उनके ग्रह नक्षत्र बदल गये हैं। अब वे लोग हाथ मल रहे होगे जिन्होने श्रीयुत् के अवसान के बाद अमहिया घराने को बुझा दीपक मान लिया था। यह मान रहे वे कि अमहिया घराने की राजनीति का समापन सदा के लिये हो गथा है मान लिया गया था कि अभिमन्यु की तरह सिद्धार्थ तिवारी चक्रव्यू  में फंस गये हैं और राजनीति की दुनिया से बाहर हो गये ?

अपमान का लेखा-जोखा

सिद्धार्थ तिवारी ने 15 महीने की कांग्रेस सरकार के दौर से कांग्रेस छोड़ने तक रीवा से लेकर राजधानी तक अनावस्त अपमान सहा है। अब वक्त उनका है इसलिये वे अपने अपमान का लेखा-जोखा भी कर सकते हैं ? सिद्धार्थ तिवारी को विलुप्त करने की तमाम सफल कोशिश करने वाले लोग बढ़ते-घटते ब्लडप्रेशर का ट्रीटमेंट जरूर लेने लगे हैं। दो पीढ़ी तक कांग्रेस की राजनीति करने वाले अमहिया घराने की तीसरी पीढ़ी ने बंटवारे का चीरा लगा दिया है। कांग्रेस उन्हें महत्व दे अथवा न दे किन्तु श्रीयुत् की नतपतोहू श्रीमती अरुणा तिवारी कांग्रेस के ही साथ हैं जबकि श्रीयुत् के नाती सिद्धार्थ तिवारी भाजपा की मुख्यधारा में जुड़कर आगे बढ़ गये हैं। लोगों ने श्रीयुत् का राजनीतिक उत्तराधिकारी सिद्धार्थ को ही मान लिया है।