भोग को तरस रहे रीवा लक्ष्मणबाग के देवता, रोटी दाल कभी साग-भात अर्पित करते हैं पुजारी

संस्थान का काम छोड़कर चला गया रसोइया, पुजारी चाहें तो पकाएं भोजन

भोग को तरस रहे  रीवा लक्ष्मणबाग के देवता, रोटी दाल कभी साग-भात अर्पित करते हैं पुजारी

रीवा @खबरिया. लक्ष्मण बाग संस्थान के नाम से पूरे देश में हजारों एकड़ जमीन है, लेकिन यहां विराजमान चारों धाम के देवता भोग के लिए तरस रहे हैं। आलम यह है कि जिन देवताओं को मालपुआ, खीर और पूड़ी का भोग लगा करता था, अब यहां के पुजारी रोटी दाल और कभी भात - साग भोजन के पूर्व देवताओं को अपत करते हैं। वेतन न मिलने से संस्थान में कार्यरत रसोंइया भी काम छोड़ चुका है, ऐसे में पुजारियों को अपने हाथों से स्वयं और देवताओं के लिए दाल - रोटी पकानी पड़ रही है। सबसे अहम सवाल तो यह है कि इस ट्रस्ट की बागडोर पूरी तरह से कलेक्टर के हाथ में है। वर्षों पुराने लक्ष्मणबाग संस्थान की व्यवस्था लुंजपुंज हो चुकी है। करोड़ों रुपए की जमीन जायदाद वाला यह संस्थान बदइंतजामी के चलते बुरे दौर से गुजर रहा है। बताया जाता है कि संस्थान के मंदिर में विराजे देवता को भोग के लिए तरसना पड़ रहा है। पिछले तीन माह से खानसामा के काम छोड़ने के बाद से यहां की व्यवस्था और खराब हो गई। पुजारियों की माने तो रसोंइया के रहने तक देवताओं को पूड़ी खीर का भोग लग जाता था, लेकिन उसके बाद यह भी बंद हो गया।

पुजारी अलग-अलग फूंकते हैं चूल्हा

रसोंइया के जाने के बाद लक्ष्मणबाग में मौजूद सभी पुजारी स्वयं अपने हाथ से चूल्हा फूंकने लगे। ज्यादातर पुजारी बुजुर्ग हैं जिनके लिए भोजन बनाना आसान काम नहीं है, लेकिन पेट की आग बुझाने और उसी में भोग चढ़ाने की विवशता में उन्हें चूल्हा जलाना पड़ रहा है। रसोंई बंद हो जाने के कारण सभी अलग - अलग खाना बनाने लगे हैं। सबसे दुखद बात यह नजर आयी कि देवताओं का विशेष भोग लगना ही महीनों से बंद है, पुजारी खाने के पहले देवताओं को रोटी,दाल और चावल-साग का भोग लगा देते हैं।

क्या कहते हैं पुजारी

85 वर्षीय पुजारी भैयालाल बताते हैं कि मंदिर की व्यवस्था बदहाल हो चुकी है। विभिन्न धामों के विराजे देवताओं को अब दाल रोटी और चावल साग का भोग लगाना पड़ता है। जबकि यहां के देवताओं को पहले 9 किलो का मालपुआ और पूड़ी खीर से भोग लगता था,लेकिन जब से प्रशासनिक दखल शुरू हुआ, तब से भगवान की उपेक्षा होना शुरू हुआ। पुजारी भैया लाल कहते हैं कि वे 23 साल से यहां रह रहे हैं, लेकिन इतनी बुरी स्थिति पहले नहीं देखी। उन्होंने बताया कि कलेक्टर संस्थान का प्रशासक है, और एसडीएम हुजूर वैशाली जैन को दायित्व दे रखा है, जिन्होंने धर्मखव शाखा के दो बाबुओं को यहां की व्यवस्था का रहनुमा बना दिया। दोनों बाबुओं ने ट्रस्ट का निजीकरण कर डाला।

यह मामला कल ही मेरे संज्ञान में लाया गया है। आज मेंने मंदिर के पुजारी को फाइल के साथ बुलाया था,रसोंइया के जाने के बाद से देवताओं के विशेष भोग न लग पाने की जानकारी मुझे आज ही दी गई। में इसकी जांच कराऊंगी कि किस बजह से रसोंइया काम छोड़ दिया और भगवान को भोग लगाने के लिए वहां के पुजारियों को स्वयं व्यवस्था करनी पड़ रही है।
वैशाली जैन, एसडीएम हुजूर रीवा