Digvijay Singh : कहानी राघौगढ़ के 'राजा' दिग्विजय सिंह की, ऐसे बने नगर पालिका अध्यक्ष से MP के मुख्यमंत्री

Digvijay Singh Political Career: दिग्विजय सिंह की गिनती देश के ताकतवर नेताओं में होती है. अपने राजनीतिक करियर के दौरान वह मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद जैसे कई पदों पर रहे. आज हम आपको उनके राजनीतिक करियर के बारे में बताएंगे...

Digvijay Singh : कहानी राघौगढ़ के 'राजा' दिग्विजय सिंह की, ऐसे बने नगर पालिका अध्यक्ष से MP के मुख्यमंत्री

Digvijay Singh 2024: मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल क्षेत्र में एक जिला है गुना. गुना में ही एक राघौगढ़ शाही रियासत थी. इस रियासत की खास बात यह है कि इसका सियासत से कई सालों से खास रिश्ता रहा है. इसी रियासत से एक ऐसा नेता निकला जो न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश के ताकतवर नेताओं में गिना जाता है. वो, विधायक, सांसद,  मुख्यमंत्री और कई पदों पर रहे. यहां तक कि उन्हें कांग्रेस नेता राहुल गांधी का राजनीतिक गुरू भी कहा जाता है. आप समझ ही गए होंगे कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं दिग्विजय सिंह यानी दिग्गी राजा की. तो आइए जानते हैं उनके सियासी करियर के बारे में...

दिग्विजय सिंह का राजनीतिक सफर
दिग्विजय सिंह का जन्म 28 फरवरी 1947 को बलभद्र सिंह के यहां पर हुआ था. उनके पिता, बलभद्र सिंह, राघौगढ़ के राजा थे. बलभद्र सिंह राघौगढ़ से विधायक भी रहे थे. वह हिंदू महासभा द्वारा समर्थित एक निर्दलीय विधायक बने थे. वहीं, दिग्विजय सिंह का राजनीतिक सफर पांच दशक से चल रहा है. दिग्विजय सिंह की राजनीतिक पारी 1969-70 में शुरू हुई और 22 साल की उम्र में दिग्विजय ने राघौगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष का पद संभाला. बता दें कि उन्हें जनसंघ में शामिल होने का निमंत्रण भी मिला था. खास बात यह थी कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने उन्हें जनसंघ में शामिल होने के लिए कहा था. जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया. बल्कि, दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस की विचारधारा को चुना. इसका कारण यह था कि उनके पिता की मित्रता कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद नारायण से थी. दूसरा कारण यह भी बताया जाता है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने दिग्विजय को जनसंघ में शामिल होने का न्योता दिया था. इसलिए वह जनसंघ में शामिल नहीं हुए. ऐसे में आपके लिए कुछ ऐतिहासिक जानकारी जानना जरूरी है. दरअसल, राघौगढ़ रियासत ग्वालियर राज्य के अधीन थी. राघौगढ़, ग्वालियर राज्य की जागीर थी. राघौगढ़ के शासकों अर्थात दिग्विजय सिंह के पूर्वजों को ग्वालियर के लिए टैक्स एकत्र करने का कार्य सौंपा गया था. उस परम्परा के अनुसार जागीरदार अपने महाराज को अन्नदाता कह कर सम्बोधित करते थे. मतलब, इतिहास के पन्नों में सिंधिया, दिग्विजय के अन्नदाता थे. इसलिए दिग्विजय सिंह अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे. वह सिर्फ अपने अन्नदाता के दरबार में जाकर उनके वफादार नहीं बनना चाहते थे. वे अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहते थे. इसी के चलते वह कांग्रेस में शामिल हुए. जिसके बाद, 1977 में, उन्होंने राघौगढ़ से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर अपना पहला विधायक का चुनाव लड़ा और जीता.